सिंगरौली जिले में ताप विद्युत एवं सहायक उद्योगों में मानव संसाधन प्रबंध

 

डॉ. भानू साहू1, अनिल कुमार नायर2

1सह प्राध्यापक (वाणिज्य) मध्यांचल प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी, भोपाल (.प्र.)

2मध्यांचल प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी, भोपाल (.प्र.)

*Corresponding Author E-mail:

 

ABSTRACT:

उद्योग किसी भी देश की व्यापारिक, वाणिज्यिक एवं आर्थिक उन्नति के आधार होते हैं। विश्व के सभी प्रगतिशील देशों ने औद्योगिक क्षेत्र में काफी प्रगति की है। आधारभूत उद्योगों के बिना देश की उन्नति संभव नहीं है। इन उद्योगों में ताप विद्युत उद्योग, लोहा एवं इस्पात उद्योग, कोयला उद्योग, इंजीनियरिंग उद्योग आदि को शामिल किया जाता है।

 

KEYWORDS: ताप विद्युत, सहायक उद्योग.

 


INTRODUCTION:

उद्योग किसी भी देश की व्यापारिक, वाणिज्यिक एवं आर्थिक उन्नति के आधार होते हैं। विश्व के सभी प्रगतिशील देशों ने औद्योगिक क्षेत्र में काफी प्रगति की है। आधारभूत उद्योगों के बिना देश की उन्नति संभव नहीं है। इन उद्योगों में ताप विद्युत उद्योग, लोहा एवं इस्पात उद्योग, कोयला उद्योग, इंजीनियरिंग उद्योग आदि को शामिल किया जाता है।

 

साम्राज्यवादी व्यवस्था के पूर्व भारतीय ग्राम आत्मनिर्भर थे और भारतीय कारीगरी की ख्याति दूर-दूर तक थी। भारत के सामानों से विदेशी मण्डियां भरी रहती थी। अठारहवीं शताब्दी के अन्त तक भारत से उत्कृष्ट, सूती और रेशमी वस्त्र, मशाले नील, चीनी, दवायें और जवाहरात आदि बड़ी मात्रा में विदेश भेजे जाते थे। इस्ट इण्डिया कम्पनी के आने के बाद देश में महत्वपूर्ण आर्थिक परिवर्तन हुये। प्रारंभ में इस्ट इण्डिया कम्पनी ने भारतीय वस्तुओं का बहुत बड़ी मात्रा में निर्यात किया, परन्तु कालांतर में भारतीय व्यापार एवं कला-कौशल का गला घोटने की नीति अपनायी गयी जिससे व्यापार एवं उद्योगों का हनन हुआ, परिणामस्वरूप औद्योगिक विकास में व्यवधान उत्पन्न होने लगा। उन्नीसवीं शताब्दी के पूर्व भारत में पूँजी लगाकर अंग्रेजों ने यहां की अर्थव्यवस्था पर अपनी पकड़ मजबूत कर ली और साथ ही भारत का धन इंग्लैण्ड ले गये। इन दोनों कारणों से भारत का आर्थिक शोषण हुआ। धन के इस निर्गमन ने जहां भारत को निर्धन बनाया वहीं इंग्लैण्ड के औद्योगिक विकास ने गति पकड़ी, जिसके कारण भारत के औद्योगिक विकास में बाधा उत्पन्न होने लगी।

 

स्वतंत्रता के पूर्व वास्तव में देश के मानव संसाधन प्रबंध पर कोई ध्यान नहीं दिया गया। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात भी इस पर वांछित ध्यान नहीं दिये जाने के कारण अर्थव्यवस्था में सुस्ती का दौर जारी हो गया जबकि कोई भी राज्य मानव संसाधन प्रबंध केे बिना प्रगति नहीं कर सकता है। बदलते वैश्विक व्यावसायिक परिदृश्य में भौतिक संसाधनों की अपेक्षा मानव संसाधन अधिक महत्वपूर्ण हो गया है। मानव पूँजी ने व्यावसायिक एवं औद्योगिक संगठनों में पूंजी का रूप ले लिया है। इस प्रकार मानव पूँजी ही सम्पूर्ण व्यावसायिक पद्धति का केन्द्र बिन्दु एवं सम्पूर्ण आर्थिक क्रियाओं का आधार है। मानव एक जटिल एवं सक्रिय घटक है जिसका प्रबंधन एवं चुनौती पूर्ण कार्य है।

 

मानव संसाधन की अवधारणा विकासशील एवं परिवर्तनशील अवधारणा है। संगठनों में मांसपेशी शक्ति की जगह दिमागी शक्ति का प्रभुत्व बढ़ता जा रहा है। अतः संगठन में कुशलता, विकास, ज्ञान, निर्माण, प्रबंध एवं संगठन विकास नैतिकता एवं मूल्य विकास आदि मानव संसाधन प्रबंध एवं विकास के प्रमुख आयाम के रूप में उभरकर सामने आये हैं। मानव संसाधन प्रबंध एक गतिशील विषय के रूप में प्रशासन, व्यवसाय, सेवा, स्वास्थ्य, शिक्षा, सामाजिक एवं राजनीतिक समस्त क्षेत्रों में अपना महत्व स्थापित कर महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।

 

व्यापार एवं व्यवसाय वांछित लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये संस्थान के भौतिक तथा मानवीय संसाधनों का प्रभावी संयोग होता है। नैतिक कारक जीवन विहीन होते हैं एवं स्वयं कोई क्रिया नहीं कर सकते। इसे मानव शक्ति द्वारा चलाना एवं क्रियाशील करना संभव होता है। अतः मानव संसाधन को उत्पादन के अनिवार्य, महत्वपूर्ण एवं अपरिहार्य कारक के रूप में स्वीकार करना आवश्यक है। व्यावसायिक सफलता हेतु मुख्य दो तत्व अनिवार्य होते हैं। प्रथम, उद्यमशीलता एवं द्वितीय प्रबंधकीय कुशलता। वर्तमान आर्थिक एवं व्यावसायिक परिपेक्ष्य में हो रहे नवाचार एवं परिवर्तित सामाजिक मान्यताओं से व्यावसायिक क्रियाओं में बहुआयामी जटिलता, प्रबंध की शिक्षा से कुशल प्रबंधन की ओर प्रेरित करती है।

 

मानव संसाधन प्रबंध व्यक्तियों तथा संगठनों को साथ लाने की एक प्रक्रिया है ताकि प्रत्येक लक्ष्य को प्राप्त किया जा सके। यह प्रबंधकीय प्रक्रिया का वह भाग है जिसका संबंध एक संगठन में मानवीय संसाधनों के प्रबंध से है। यह व्यक्तियों के पूर्ण सहयोग को जीतकर उनसे सर्वश्रेष्ठ को सुरक्षित करने का प्रयत्न करता है। इसे एक संगठन के लक्ष्यों को एक प्रभावी तथा कुशल तरीके से प्राप्त करने के लिये योग्य कार्य शक्ति को प्राप्त करने, विकसित करने तथा बनाये रखने की कला के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।

 

इनवनोविच तथा ग्लूक के अनुसार - ‘‘मानव संसाधन प्रबंध का सम्बन्ध संगठनात्मक तथा शक्तिगत लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये व्यक्तियों के सबसे प्रभावी उपयोग से है। यह लोगों को कार्य करने पर प्रतिबंधित करने का एक तरीका है ताकि वे संगठन को उनका सर्वश्रेष्ठ दे सके।‘‘

 

.एफ.एल. ब्रेच के शब्दों में - ‘‘मानव संसाधन प्रबंध, प्रबंध प्रक्रिया का वह भाग है जो मुख्यतः किसी संगठन के मानवीय तत्वों से संबंधित है।‘‘1

 

पूर्व में किये गये कार्यो की संक्षिप्त समीक्षा:-

प्रस्तुत शोध प्रबंध ‘‘सिंगरौली जिले में ताप विद्युत एवं सहायक उद्योगों में मानव संसाधन प्रबंध’’ का अध्ययन पूर्णतः मौलिक है तथा शोधार्थी द्वारा किया गया अध्ययन ताप विद्युत एवं सहायक उद्योगों में मानव संसाधन प्रबंध की अवधारणा, मानव संसाधन प्रबंध का क्षेत्र एवं महत्व, प्रबंध के कार्य एवं दायित्व, प्रबंधकीय सिद्धांत एवं मानव संसाधन विकास की प्रक्रिया, इन उद्योगों का इतिहास, वर्तमान स्थिति एवं विकास की संरचना तथा वैश्विक मानव संसाधन के महत्वपूर्ण पहलुओं की वास्तविक स्थिति को स्पष्ट करने हेतु क्रमबद्ध, सुव्यवस्थित एवं तथ्यात्मक प्रयास किया गया है।

प्रस्तावित शोध अध्ययन से संबंधित अनेक शोध उपाधियाँ अवधेष प्रताप सिंह विष्वविद्यालय रीवा (.प्र.) द्वारा प्रदान की गयी है। डॉ. डी.सी. सिन्हा के सफल निर्देषन एवं कुषल मार्गदर्षन में शोधार्थी अशोक खरे को वाणिज्य एवं प्रबंधन से संबंधित विषय पर (1993) प्रदत्त शोध उपाधि शोधार्थी के लिए दिषा निर्देषन में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन कर रही है। डॉ. राजीव दुबे आचार्य विष्वविद्यालय षिक्षण विभाग रीवा (.प्र.) के सफल मार्गदर्षन में श्री मनोज कुमार दुबे को भी सन् 2001 में प्रबंध से संबंधित विषय पर उपाधि प्रदान की गयी है।

 

डॉ. डी.सी. सिन्हा के ही कुषल मार्गदर्षन में शोधार्थी श्याम कुमारी को ‘‘.प्र. की आदिवासी विकास योजनाओं का प्रबंधन एवं मूल्यांकन’’ विषय पर सन् 1985 में शोध उपाधि इस विष्वविद्यालय द्वारा प्रदान की गयी है। डॉ. डी.के. श्रीवास्तव के सफल निर्देषन एवं कुषल मार्गदर्षन में श्री रामलला शुक्ला को ‘‘सिंगरौली के कोयला उद्योग में श्रमिकों की आर्थिक स्थिति का अध्ययन’’ विषय पर सन् 1997 में शोध उपाधि प्रदान की गयी है। इसी प्रकार डॉ. (श्रीमती) आषा गुप्ता के निर्देषन एवं मागदर्षन में श्री पन्नालाल अवस्थी को ‘‘सिंगरौली जिले के विकास में स्वरोजगार योजनाओं का प्रभावएक आर्थिक विष्लेषण’’ विषय पर सन् 2012 में शोध उपाधि प्रदान की गयी है। इनके अतिरिक्त मानव संसाधन प्रबंध से संबंधित अनेकानेक शोध उपाधियाँ प्रदान की जा चुकी है।

 

शोध का उद्देश्य:-

किसी भी सामाजिक तथा आर्थिक क्षेत्र से संबंधित तथ्यों के अध्ययन के लिए निश्चित उद्देश्यों का होना अत्यंत आवश्यक है इन्ही उद्देश्यों के आधार पर शोधार्थी को अपना शोध कार्य करना प्रारंभ करता है। प्रस्तुत लघु शोध प्रबंध के उद्देश्यों का उल्लेख निम्न प्रकार से किया गया है-

1.        औद्योगिक संगठन के लिए सही व्यक्तियों का चयन कर सही जगहो पर लगाना तथा उन्हे संगठन के उद्देश्यों से जोड़ना।

2.        संगठन में कार्यरत् मानव सम्पदा का भरपूर तथा प्रभावशाली उपयोग करना।

3.        मानव संसाधन की कार्यक्षमता को विकसित करना।

4.        व्यक्तियों के विकास के पूर्ण अवसर सुनिश्चित कराना तथा कर्मचारियों के मनोबल को ऊँचा उठाएँ रखना।

5.        संगठन के अन्दर आपसी संबंध विकसित करना तथा औद्योगिक शान्ति एवं औद्योगिक संबंध कायम करना।

6.        संगठन के कार्यो, प्रकार्यो, स्थितियों, कृत्यों को विभाजित एवं परिभाषित करते हुए संगठनात्मक ढाँचे को सुदृढ़ करना।

7.        कर्मचारियों के लिए उपयुक्त एंव प्रेरणापूर्ण क्षतिपूर्ति की व्यवस्था करना तथा सामाजिक सुरक्षा की योजनाओं का संचालन करना।

 

परिकल्पना:-

प्रस्तुत शोध की निम्नलिखित परिकल्पनाएं हैं -

1.        सिंगरौली जिले में ताप विद्युत एवं सहायक उद्योगों का विकास तीव्र गति से हो रहा है जिससे सिंगरौली जिले का ही नहीं वरन् सम्पूर्ण देश का भी विकास संभव हो सकेगा।

2.        सिंगरौली जिले में ताप विद्युत एवं सहायक उद्योगों का विकास होने से मानव संसाधन प्रबंध का क्षेत्र और भी वृहद् एवं व्यापक हो सकेगा।

3.        ताप विद्युत एवं अन्य सहायक उद्योगों के मानव संसाधन प्रबंध के माध्यम से रोजगार की सम्भावनाओं में बढ़ोत्तरी होगी।

4.        ताप विद्युत एवं अन्य सहायक उद्योगों में मानव संसाधन के विकास से सिंगरौली वासियों एवं अन्य लोगो को रोजगार प्राप्त होने से व्याप्त गरीबी को कम किया जा सकता है।

5.        सिंगरौली जिले में मानव संसाधन प्रबंध के माध्यम से सिंगरौली वासियों के जीवन स्तर में सुधार आएगा जिससे उनके दैनिक एवं आर्थिक जीवन स्तर का विकास संभव हो सकेगा।

6.        सिंगरौली जिले में मानव संसाधन प्रबंध के माध्यम से रोजगार प्राप्ति एवं जीवनस्तर में सुधार के साथ ही महँगाई का सामना करने में सहायता होगी। 

7.        विद्युत की उपलब्धता आसान हो सकेगी।

8.        विद्युत से होने वाली असुविधाओं में कमी आएगी, आदि।

 

शोध प्रविधि:-

किसी भी शोध कार्य को उद्देश्यहीन एवं ज्ञानरहित नहीं कहा जा सकता है। इसके लिए कुछ निश्चित कारकांे से प्रेरित होकर ही निश्चित उद्देश्यों की प्राप्ति के लिये शोध-कार्य किया जाता है। ज्ञान के क्षेत्र में शोध कार्य अपरिहार्य है। वर्तमान युग में शोध या अनुसंधान का अत्यधिक महत्व है, क्योंकि किसी भी क्षेत्र से संबंधित तथ्यों का प्रमाणीकरण, नवीनीकरण, एवं सत्यापन अनुसंधान के द्वारा ही किया जा सकता है।

 

शोध कार्य में ‘‘सिंगरौली जिले में ताप विद्युत एवं सहायक उद्योगों में मानव संसाधन प्रबंध’’ से सम्बन्धित वास्तविक एवं विश्वसनीय आंकड़ों को प्राप्त करने के लिये प्राथमिक एवं द्वितीयक दोनों प्रकार के आंकड़ों को एकत्र कर पूर्ण किया गया है। प्राथमिक आकड़े स्वयं कार्य स्थल पर जाकर मूल स्रोतों एवं साक्षात्कार अनुसूची द्वारा एकत्र किये गये हैं। जबकि द्वितीयक आंकड़े मध्यप्रदेश के आर्थिक विकास में लघु उद्योगों के योगदानएवं संभावनाओं से संबंधित विभिन्न प्रकाशित- अप्रकाशित पुस्तकों, शोध पत्र-पत्रिकाओं, समाचार पत्रों, आदि से एकत्र कर प्रयोग किये गये हैं।

 

शोध का औचित्य:-

किसी शोध कार्य की शुरुआत किसी उद्देश्य को लेकर होती है। यह उद्देश्य अपना एक विशेष महत्व रखता है। किसी भी शोध प्रबंध कार्य को आरम्भ करने से पहले यह जान लेना अत्यंत आवश्यक है कि वर्तमान शोध क्यों किया जा रहा है ? शोध की समस्याएँ क्या हैं ? इन समस्याओं का अध्ययन कर सही सुझाव एवं परामर्श देकर, संभावित परिणाम एवं निष्कर्ष तक पहुॅचना ही शोध का औचित्य है। किसी भी शोध कार्य को तभी सफल माना जाता है जब उसका वास्तविक निष्कर्ष निकले एवं सही परिणाम सामने आये तथा परिणाम सार्थक हों।

 

अध्ययन क्षेत्र :-

अध्ययन का क्षेत्र सम्पूर्ण सिंगरौली जिले के वृहद ताप विद्युत परियोजनाएँ एवं सहायक उद्योग है। चूँकि जिलान्तर्गत आने वाले ये विभिन्न उद्योग अलग-अलग क्षेत्रों में स्थापित है जिसमें एन.सी.एल. की कई इकाईयाँ स्थापित है जो अलग-अलग व्यवस्थाओं एवं प्रबंधको के द्वारा क्रियान्वित हो रही है। एन.टी.पी.सी. विन्ध्यनगर में स्थापित है जो जिले की पूर्वी सीमा पर उत्तर प्रदेश से जुड़ा हुआ है। रिलायन्स पावर एम.पी. लिमिटेड भी जिले के मुख्यालय से 25 कि.मी. दक्षिण पूर्वी सीमा पर स्थापित किया गया है। एस्सार पावर एम.पी. लिमि. की दूरी 40 कि.मी. है जो दक्षिणी सीमा पर छत्तीसगढ़ से जुड़ा है। जे.पी. पावर प्राइवेट लिमि. जिला मुख्यालय से 80 कि.मी. की दूरी पर पश्चिमी सीमा पर सीधी जिले की सीमा पर स्थित है। इसके अतिरिक्त हिण्डाल्को पावर प्राइवेट लिमि. की दूरी 30 कि.मी. है। इन समस्त उद्योग क्षेत्रों में पहुँचने हेतु आधारभूत सुविधाओं की कमी के कारण आवागमन की असुविधाओं का सामना करना पड़ता है।

 

आकड़ों का वर्गीकरण और सारणीयन:-

राष्ट्रीय ताप विद्युत केन्द्र भारत की सबसे बड़ी विद्युत उत्पादक कम्पनी है। सन् 2009 में ‘‘फोर्ब्स ग्लोबल 2000‘‘ में इसका स्थान 317वां है। यह भारत की सार्वजनिक क्षेत्र की कम्पनी है जो मुम्बई स्टाक विनिमय में पंजीकृत है। इसमें वर्तमान में भारत सरकार का हिस्सा 89ण्5 है। 34194 मेगावाट की मौजूदा उत्पादन क्षमता के साथ राष्ट्रीय ताप विद्युत केन्द्र निगम की वर्ष 2017 तक 75000 मेगावाट कम्पनी बनाने की योजना है। इसका प्रमुख कार्य ताप विद्युत संयंत्रों की प्रौद्योगिकी निर्माण एवं संचालन है। यह भारत एवं विदेश की विद्युत उत्पादक कम्पनियों को तकनीकी सलाह भी देती है।

 

राष्ट्रीय ताप विद्युत निगम के विकास हेतु कई संयुक्त उपक्रम एवं सहायक कम्पनियाँ अपनी क्षमता का उपयोग कर रही है। बाजार पूंँजीकरण की दृष्टि से यह भारत की सबसे बड़ी कम्पनी है। विकास को ध्यान में रखकर कोयला खनन एवं हाइड्रो के क्षेत्र में कम्पनी ने अपनी पकड़ मजबूत की। भारत में इस कम्पनी के 8 मुख्यालय है।

 

कम्पनी की वर्तमान में कुल स्थापित क्षमता 17 कोयला आधारित एवं 7 गैस आधारित संयंत्रों के साथ 43803 मेगावॉट है। संयुक्त उपक्रम के अन्तर्गत 6 कोयला आधारित एवं एक अन्य ईधन के रूप में संयंत्र स्थापित है। स्थिति को निम्नानुसार तालिका द्वारा दृष्टिगत किया जा सकता है।

 

तालिका क्रमांक - 1

Øa-

LFkku

jkT;

mRiknu {kerk

1-

flaxjkSyh

e/; izns'k

2000 MW

2-

dksjok

NRrhlx<+

2600 MW

3-

jkekxq.Me

vkU/kz izns'k

2600 MW

4-

QjDdk

if'pe caxky

2100 MW

5-

foU/;kapy

e/; izns'k

4260 MW + 500 MW fuekZ.kk/khu  = 4760 MW

6-

fjgUn

mRrj izns'k

2000 MW + 1000 MW fuekZ.kk/khu

= 3000 MW

7-

dgyxk¡o

fcgkj

2340 MW

8-

,u-Vh-ih-lh- nknjh

mRrj izns'k

1820 MW

9-

rkypj dfugk

mM+hlk

3000 MW

10-

špkgkj

mRrj izns'k

1550 MW

11-

rkypj FkeZy

mM+hlk

460 MW

12-

flEgknzh

vkU/kz izns'k

2000 MW

13-

VkaMk

mRrj izns'k

440 MW + 1320 MW fuekZ.kk/khu = 1760 MW

14-

onjiqj

fnYyh

705 MW

15-

lhir&II

NRrhlx<+

2980 MW

 

उपरोक्त तालिका से स्पष्ट है कि 15 कोयला आधारित प्रमुख परियोजनाओं के अन्तर्गत स्थापित संयंत्रों के साथ एन.टी.पी.सी. देश की सबसे बड़ी विद्युत उत्पादक कम्पनी है। कम्पनी में कोयला आधारित संस्थापित क्षमता 33675 मेगावॉट है। अध्ययन क्षेत्र सिंगरौली (मध्य प्रदेश) में विन्ध्यांचल सुपर थर्मल पावर प्रोजेक्ट की उत्पादन क्षमता 4760 मेगावॉट है। मध्य प्रदेश राज्य में सिंगरौली क्षेत्रान्तर्गत सिंगरौली सुपर थर्मल पावर प्रोजेक्ट की क्षमता 2000 मेगावॉट एवं रिहन्द सुपर थर्मल पावर प्रोजेक्ट की उत्पादन क्षमता 3000 मेगावॉट है।

 

तालिका क्रमांक - 2 %

Coal Based (Owned through JVs)

No.

Name of the JV

Location

State

Inst. Capacity in Megawatt

1

NSPCL Joint Venture with SAIL

Durgapur

West Bengal

120

2

NSPCL Joint Venture with SAIL

Rourkela

Orissa

120

3

NSPCL Joint Venture with SAIL

Bhilai

Chhattisgarh

574

4

NPGC Joint Venture with Bihar state Electricity Board

Aurangabad

Bihar

1980

5

Muzaffarpur Thermal Power Station (MTPS) Joint Venture with Bihar state Electricity Board

Kanti

Bihar

490

6

BRBCL Joint venture with Indian Railwasy

Nabinagar

Bihar

1000

7

Aravali Power CPL JV with HPGCL and IPGCL

Jhajjar

Haryana

1500

8

NTECL JV with NTPC and TNEB

Chennai

Tamil Nadu

1500

9

Meja Thermal Power Station JV with NTPC and UPRVUNL

Allahabad

Uttap Pradesh

1320

 

Total :

 

 

8604

 

तालिका क्रमांक - 3 %

Gas based thermal Power Plants

No.

Power Project

State

Capacity MW

1.

Anta

Rajasthan

419.33

2.

Auraiya

Uttar Pradesh

663.36

3.

Kawas

Gujrat

656.20

4.

Dadri

Uttar Pradesh

829.78

5.

Jhanor-Gandhar

Gujrat

657.39

6.

Kayamkulam

Kerala

359.58

7.

Faridabad

Hariyana

431.59

 

Total :

 

5017.23

 

गैस आधारित (संयुक्त उपक्रम के माध्यम से स्वामित्व में):-

रत्नागिरी गैस एण्ड पावर प्राइवेट लिमिटेड (आर.जी.पी.पी.एल.) महाराष्ट्र के भारतीय राज्य में गेल के साथ संयुक्त उद्यम परियोजना है। यह स्थापित क्षमता 1967.08 मेगावॉट है।

 

पन बिजली संयंत्र:-

कम्पनी ने भी अपने पनबिजली (हाइडल) परियोजनाओं के कार्यान्वयन के लिये कदम रखा है। इन परियोजनाओं में से कुछ है।

 

एन.टी.पी.सी. लिमिटेड द्वारा स्वींतपदंह पाला जल विद्युत परियेाजना:- स्वींतपदंह पाला जल विद्युत परियोजना (600 मेगावॉट 150 मेगावॉट एक्स 4 इकाइयां) उत्तराखण्ड राज्य के उत्तरकाशी जिले में भागीरथी नदी (गंगा की एक सहायक नदी) पर स्थित है। इस गंगोत्री में गंगा के उद्म से नीचे की ओर पहली परियोजना है। यह अगस्त 2010 में भारत सरकार द्वारा बंद किया गया था जब परियोजना निर्माण के अग्रिम चरण में था।

 

एन. टी. पी. सी. लिमिटेड द्वारा तपोवन विष्णुगाड 520 डॅ हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट:- जोशीमठ शहर में परियोजना निर्माणाधीन है।

 

एन. टी. पी. सी. लिमिटेड द्वारा लता तपोवन 130 डॅ हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट:- जोशीमठ के लिये आगे नदी के ऊपर है। इस परियोजना को पर्यावरण संबंधी संशोधन के अधीन है।

 

सिंगरौली जिले में ताप विद्युत एवं सहायक उद्योगों में मानव संसाधन प्रबंध:-

राष्ट्रीय ताप विद्युत निगम परियोजना देश की एकमात्र अग्रणी विद्युत उत्पादक कम्पनी नहीं है, यह सार्वजनिक क्षेत्र के उन शीर्षस्थ उपक्रमों मंे से एक है जो उन विभिन्न क्षेत्रों में जहाँ इसकी परियोजनाएँ स्थापित है, लोगों के जीवन में बदलाव लाने की निर्णायक भूमिका निभा रहे हैं। मानव संसाधनों के प्रबंध एवं विकास हेतु इसके निरंतर कार्य तथा साथ ही आसपास के क्षेत्रों में सामुदायिक विकास कार्यक्रम राष्ट्रीय ताप विद्युत निगम की नैगम सामाजिक उत्तरदायित्व के प्रति गहन प्रतिबद्धता का सुस्पष्ट प्रमाण है। इस प्रक्रिया में ताप विद्युत निगम की परियोजनाओं ने परियोजनान्तर्गत मानव संसाधनों तथा ग्रामवासियों के जीवन स्तर को सुधारने के अतिरिक्त क्षेत्रीय अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान करने में सहायता की है। ताप विद्युत निगम के विभिन्न कार्य एवं दायित्वों द्वारा मानव संसाधन प्रबंध में सुधार किया जा रहा है।

 

सिंगरौली क्षेत्र दो जिलों में विस्तारित है, मध्य प्रदेश में सिंगरौली एवं उत्तर प्रदेश में सोनभद्र। इस क्षेत्र मेें तीन सुपर ताप विद्युत संयंत्र/परियोजनाये हैं।

1.     सिंगरौली सुपर ताप विद्युत संयंत्र

2.     विन्ध्यांचल सुपर ताप विद्युत संयंत्र

3.     रिहन्द ताप विद्युत संयंत्र

 

इनमें से रिहन्द उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले में है जबकि सिंगरौली तथा विन्ध्यांचल संयंत्र .प्र. के सिंगरौली जिले में है। इन्हें रिहन्द जलाशय तथा नार्दर्न कोल फील्ड कम्पनी लिमिटेड द्वारा पानी तथा कोयले की आपूर्ति की जाती है। भौगोलिक रूप से यह क्षेत्र पहाड़ियों से भरा हुआ है। जिसके नीचे हजारों टन कोयला भण्डार है। 50$ कि.मी. की परिधि में वन की सघनता अत्यन्त कम है। उत्पादन, उत्पादकता एवं आर्थिक विकास की दृष्टि से ताप विद्युत एवं सहायक उद्योगों में मानव संसाधन प्रबंध का अध्ययन एक अति महत्वपूर्ण कार्य है, क्योंकि मानव संसाधन प्रबंध की स्थिति एवं विस्तार के आधार पर ही उद्योगों की स्थिति एवं विस्तार निर्भर करता है।

 

निष्कर्ष

सिंगरौली जिले में वर्तमान में औद्योगिक विकास के लिये कई कम्पनियों ने हजारों करोड़ का निवेश करके 14 हजार मेगावाट विद्युत उत्पादन की परियोजनायें स्थापित की है तथापि स्थानीय लोगों के जनजीवन को अस्त व्यस्त कर दिया है। भले ही भारत सरकार द्वारा जारी किये गये मानव विकास के आंकड़े मानव संसाधन एवं विकास का उजला पक्ष प्रस्तुत करते हैं किन्तु जमीनी स्तर पर हकीकत कुछ अलग है। मानव संसाधन प्रबंधन के अन्तर्गत नियोजन, भर्ती एवं चयन, प्रशिक्षण एवं विकास, निष्पादन मूल्यांकन एवं कार्य मूल्यांकन की प्रक्रिया से संबंधित समस्यायें स्पष्ट रूप से दिखाई देती है। मानव संसाधनों के स्वास्थ्य एवं सुरक्षा से संबंधित समस्यायें औद्योगिक इकाईयों में प्रमुखता से पायी जाती है।

 

उपरोक्त समस्याओं के समाधान हेतु भारत सरकार ने अनेक प्रभावशाली उपाय नियमों एवं अधिनियमों के माध्यम से लागू किये हैं। मानव संसाधन प्रबंध एवं विकास की प्रक्रिया में पूर्ण रूप से पारदर्शिता बरती जा रही है। मानव संसाधनों को अनेक माध्यमों से प्रशिक्षण एवं विकास के मार्ग प्रशस्त किये जा रहे हैं। स्थानीय लोगों को भी योग्यतानुसार कार्य पर लगाया जा रहा है। मानव संसाधन के स्वास्थ्य एवं सुरक्षा को दृष्टि में रखकर अनेक नियम एवं अधिनियम बनाये जा चुके हैं जिनका पालन किया जा रहा है।

 

सन्दर्भ ग्रंथ सूची

1-    डॉ. सिन्हा, बी.सी. 2010, भारतीय अर्थव्यवस्था, साहित्य भवन पब्लिसर्स एण्ड डिस्ट्रीब्यूटस,

2-    शोध प्राविधि - प्रो. गौरीशंकर, पाण्डेय रवि प्रकाश, त्यागी महावीर सिंह

3-    विद्युत  ब्रम्होति 2003, 2004, 2007, 2010 - सम्पादक जैन एस. के., शुक्ला एस. के., सिंह बृजेन्द्र, सोनी डी. के., चौपड़ा आर. के.

4-    अनवरत प्रयास - .प्र. वि. मं. प्रभोवाधि अभियंता समूह

5-    .प्र. का आर्थिक विकास - राव एवं काण्डावर, .प्र. हिन्दी ग्रंथ अकादमी, भोपाल

6-    मध्य प्रदेश: एक भौगोलिक अध्ययन - डॉ. कुमार प्रमिला, .प्र. हिन्दी ग्रंथ अकादमी, भोपाल

7-    भारतीय अर्थव्यवस्था - डॉ. मिश्रा एस. के. एवं पुरी, हिमालया पब्लिसिंग हाउस, नई दिल्ली

8-    आडिटिंग - अवस्थी एण्ड त्रिपाठी, . प्र. हिन्दी ग्रंथ अकादमी, भोपाल

9-    मानव संसाधन प्रबंध - डा. शर्मा जी. डी., डा. शर्मा के. के., सुराना जी. सी., रमेश बुक डिपो, जयपुर - 1980

10-   व्यावसायिक प्रबंध, व्यावसायिक संगठन तथा व्यावसायिक सन्नियम - डॉ. गुप्ता, आर. सी., डा. चतुर्वेदी हरिवंश, शिवलाल अग्रवाल एण्ड कम्पनी आगरा, संशोधित संस्करण - 1998

11-   व्यावसायिक प्रबंध, प्रबंध के सिद्धांत तथा कम्पनी अधिनियम एवं सचिवीय पद्धति - डॉ. गुप्ता आर. सी. एवं डा. चतुर्वेदी हरिवंश शिवलाल अग्रवाल एण्ड कम्पनी आगरा संशोधित संस्करण: 2003

 

. अधिनियम:-

1. .प्र. विद्युत अधिनियम 2003 - भास्करन आर, एस. चन्द्र एण्ड कम्पनी, भोपाल (.प्र.)

 

. पत्रिकायें:-

1-      .प्र. वार्षिक योजना - .प्र. शासन मंत्रालय

2-      .प्र. का आर्थिक सर्वेक्षण - आर्थिक एवं सांख्यिकी संचालनालय भोपाल

3-      आर्थिक जगत - कलकत्ता

4-      जिला सांख्यिकी पुस्तिका - जिला सांख्यिकीय कार्यालय, सिंगरौली

5-      गोयल अनुपम 1993. भारतीय अर्थव्यवस्था, शिवलाल अग्रवाल एण्ड कम्पनी, इन्दौर

 

 

 

Received on 27.04.2023        Modified on 19.05.2023

Accepted on 08.06.2023        © A&V Publication all right reserved

Int. J. Rev. and Res. Social Sci. 2023; 11(2):121-128.

DOI: 10.52711/2454-2687.2023.00018